गुरुवार व्रत के हैं कई लाभ, लेकिन इस कथा के बिना नहीं मिलेगा पूजा का फल

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Guruwar Vrat Katha: हिंदू धर्म में हर दिन का अपना विशेष महत्व है. लेकिन गुरुवार व्रत को बहुत ही फलदायी माना गया है. इस दिन बृहस्पति देव और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. साथ ही इस दिन पवित्र केले वृक्ष की भी पूजा की जाती है.

गुरुवार का व्रत आप किसी भी महीने के शुक्लपक्ष के पहले गुरुवार से उठा सकते हैं. इस व्रत को करने से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती है, दांपत्य जीवन सुखमय होता है, संतान सुख की प्राप्ति होती है, आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, रोग-दोष दूर होते हैं आदि.

गुरुवार व्रत कथा का लाभ

गुरुवार व्रत का पूर्ण रूप से लाभ आपको तभी मिलेगा जब आप पूजा के दौरान गुरुवार व्रत की कथा पढ़ेंगे या सुनेंगे. इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है. मान्यता है कि गुरुवार के दिन व्रत-पवार कर पूजा में इससे संबंधित कथा पढ़ने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं और हर पीड़ा से मुक्ति मिलती है. इसलिए गुरुवार के दिन अगर आप व्रत रखते हैं तो आपको व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए.

गुरुवार व्रत कथा (Guruwar Vrat Katha in Hindi)

कथा के अनुसार, प्राचीन समय की बात है. किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज्य करता था. राजा प्रत्येक गुरूवार को व्रत रखकर पूजा-पाठ करता था और जरूरतमंद गरीबों में दान-पुण्य करता था. लेकिन राजा की पत्नी को ये सब अच्छा नहीं लगता था. वह न तो कोई व्रत करती थी और न ही किसी को कुछ देती थी. साथ ही राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी.

एक बार राजा शिकार के लिए वन की ओर गए थे और रानी महल में दासियों के साथ थी. तभी बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर महल में पहुंच गए पर द्वार पर खड़े होकर भिक्षा मांगने लगे. रानी ने साधु से कहा, हे साधु महाराज, मैं इस दान-पुण्य से तंग आ चुकी हूं. अब आप ही कोई उपाय बताएं, जिससे कि मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रहूं.

साधु ने कहा, हे देवी! तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से भला कोई दुखी होता है. यदि अधिक धन है तो इसे शुभ कामों में लगाओ, कुवांरी कन्याओं का विवाह कराओ, गुरुकुल और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, जरूरमंदों में दान करो. इससे तुम्हें पुण्य मिलेगा और स्वर्ग की प्राप्ति होगी. लेकिन साधु की इन बातों को सुन रानी ने कहा, मुझे ऐसे धन की कोई आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं या जिसे संभालने में मेरा समय नष्ट हो.

साधु ने कहा, देवी यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना. बृहस्पतिवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस मदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना. इन कामों को हर बृहस्पतिवार को करना और इन कामों को सात बृहस्पतिवार तक करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा.यह कहकर साधु रुपी बृहस्पतिदेव महल से अंतर्ध्यान हो गए.

रानी ने साधु के कहेनुसार हर बृहस्पतिवार के दिन ये सारे काम किए. लेकिन केवल तीन बृहस्पतिवार बीतने के बाद उसकी सारी धन-संपत्ति नष्ट हो गई. यहां तक कि भोजन के लिए तरसने की नौबत आ गई. परिवार की स्थिति देख राजा ने रानी से कहा- हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश जाकर काम ढूंढता हूं. क्योंकि यहां सभी मुझे जानते हैं, इसलिए मैं कोई छोटा काम नहीं कर सकता. इतना कहकर राजा परदेश चला गया. परदेश में राजा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचने का काम करने लगा और इस तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगा. इधर, राजा के परदेश जाते ही रानी दुखी रहने लगी.

एक बार रानी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा. रानी ने अपनी दासी से कहा- हे दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है. वह बड़ी धनवान है. तू उसके पास जा और कुछ ले आ ताकि हमारा थोड़ा-बहुत गुजर-बसर हो जाए. दासी रानी की बहन के पास चली गई. उस दिन बृहस्पतिवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी. दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया.

बहन से कोई उत्तर न मिलने पर दासी दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया. दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बताई. यह सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा. उधर, रानी की बड़ी बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी. लेकिन मुझसे बिना कुछ कहे ही चली गई. वह कथा और पूजन समाप्त कर तुंरत बहन से मिलने चली आई और कहने लगी- हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी. तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी लेकिन जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठती हूं और न ही बोलती हूं, इसलिए मैंने दासी से कुछ नहीं कहा. कहो दासी क्यों आई थी मेरे पास.

रानी बोली- बहन, तुमसे क्या छिपाऊं. हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था. ऐसा कहते-कहते रानी की आंखे भर आई. उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को बताई. रानी की बहन बोली- देखो बहन, बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं. शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो. रानी को विश्वास तो नहीं हुआ. लेकिन बहन के आग्रह करने पर उसने दासी को अंदर भेजा तो अनाज भरा एक घड़ा मिल गया. यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई. दासी रानी से कहने लगी- हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं. इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ लें और हम भी व्रत कर सके. रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत की विधि पूछी.

बहन ने कहा, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का पूजन करो. केले की जड़ में पूजन करो और दीपक जलाओ. व्रत कथा सुनो और व्रत में पीला भोजन ही करो. इससे वृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं. व्रत और पूजन विधि बतलाकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई

सातवें रोज जब गुरुवार आया तो रानी और दासी ने व्रत रखा. घुड़साल में जाकर चना और गुड़ बीन लाई और फिर उसकी दाल से केले की जड़ और विष्णु भगवान का पूजन किया. लेकिन पीला भोजन कहां से आए इस बात को लेकर दोनों दुखी थे. तब भगवान एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में पीला भोजन दासी को दे गए. भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया.

इसके बाद दोनों प्रत्येक गुरूवार का व्रत और पूजन करने लगीं. भगवान बृहस्पति की कृपा से रानी के पास फिर से धन-संपत्ति आ गई. धन संपत्ति आते ही रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी. तब दासी ने कहा- रानी जी, आप पहले भी इसी तरह आलस्य करती थी,आपको धन रखने में कष्ट होता था, जिस कारण सब धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान की कृपा से धन मिला है तो आलस्य नहीं करना चाहिए. हल्कि हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए और धन को शुभ कामों में खर्च करना चाहिए, जिससे कुल का यश बढ़े, स्वर्ग की प्राप्ति हो और पित्तर प्रसन्न हों. दासी की बात सुनकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा. इधर राजा भी वापस लौट आए.

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